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पोलियो प्रभावित अंग की तरह ढो रहे डीआरडीओ को…

Badlegi Duniya
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drdo

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रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के बारे में अधिक नहीं जानता था, लेकिन पत्रकारिता की पढा़ई के दौरान कॉलेज विजिट पर ट्रेड फेयर गया था। मेरे साथ जो थे उनमें से कुछ मुझे बेहद प्यार करते थे इसलिए लगे थे तो कुछ ऐसे भी थे जिनको मेरी वजह से बेहतर जानने का मौका मिलने की उम्मीद थी। खैर स्वभाव के मुताबिक कुछ ऐसी बात जानने को बेकरार था, जिसका कखग भी न पता हो। डीआरडीओ को उस समय मैं केवल एक रक्षा संगठन के तौर पर ही जानता था, ऐसे में जब उनका स्टॉल देखा तो खुद को रोक नहीं सका और तब तक जानने की कोशिश की जब तक बताने वाला मुझे घूरने नहीं लगा। जो कर्मचारी जानकारी दे रहा था वो बिल्कुल पीटीआइ, आकाशवाणी और दूरदर्शन की तरह ही बातें कर रहा था, मतलब बुराइयों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं। ट्रेड फेयर घूमने के बाद देर शाम घर पहुंचा तो मन अशांत था… अपने दोनों जिगरी यारों से भी बात करने का दिल नहीं कर रहा था। कुछ सवाल थे जो दिमाग में चुभ रहे थे। अगर डीआरडीओ इतना अच्छा है तो फिर हम दुनिया में सैन्य सामानों के सबसे बड़े खरीददार क्यों हैं… अगर डीआरडीओ ने हमारी सेना को इतना शक्तिशाली बनाया है तो चंद लोग हमारे आइसी-814 को गन प्वाइंट पर कैसे हाईजैक कर उड़ा ले गए… महज कुछ दिन का प्रशिक्षण लेकर कोई हमारी शान होटल ताज को कुरूप करने की हिमाकत कैसे कर सकता है… एक राज्य के मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर क्रैश हो जाता है और हम तीन दिनों तक उसका पता नहीं लगा सके…। मैंने सील कमांडो की पाकिस्तान में उस कार्रवाई को भी देखा जो चंद मिनटों की थी, लेकिन पूरी दुनिया में छा गई। मुझे ही नहीं पूरी दुनिया को हमारे वीर जवानों की वीरता में कोई संदेह नहीं… तभी तो जिस सील कमांडो की तारीफ हो रही थी वे पिछले साल जून की गर्मियों में राजस्थान के मरुस्थल में हमारे जवानों के साथ सैन्य अभ्यास के लिए आए थे।
अपनी बात रखने से पहले ही साफ कर देना चाहता हूं कि मैं न तो नरेंद्र मोदी का विरोधी हूं और न ही प्रसंशक। 2002 में गुजरात दंगों पर मेरी अंतरआत्मा ने नरेंद्र मोदी को धिक्कारा भी था और हाल के कुछ फैसलों पर दिल से वाह-वाही भी की। मोदी की उस हरकत पर गुस्सा भी आया था जब सरेआम एक सभा में धर्म विशेष की टोपी पहनने से इन्कार कर दिया था और उस बात पर गर्व भी हुआ था जब गुजरात में एनआरआइ सम्मेलन करके बिजनेस के नए आइडिया से पूरे विश्व का ध्यान खींचा था। डीआरडीओ हमारे लिए ठीक वैसा ही है जैसा पोलियो प्रभावित अंग। देखभाल पर भारी भरकम रकम खर्च कर उस भार को ढोना ही हमारी मजबूरी। मेरी बात से कुछ लोग जरूर असहमत होंगे, लेकिन आंकड़ों को तो नजरअंदाज नहीं कर सकते। 1968 में डीआरडीओ का गठन हुआ और मौजूदा समय में 52 प्रयोगशाला, 30 हजार कर्मचारियों और 1528 हजार के भारी-भरकम बजट के साथ चल रहा है। डीआरडीओ में करीब 14 प्रोजेक्ट इस समय चल रहे हैं, जिनका इंतजार हमारी सेना 2008 से कर रही है। देश की जनता बेवकूफ नहीं है, इंटरनेट के मौजूदा दौर में उसे पता है कि जब रूस 16000 K.M. तक मार करने वाली R-36M-2, हमारा पड़ेसी चीन 15000 K.M. तक मार करने वाली DONG FENG-41 (DF-41) और यूएस 13000 K.M. तक मार करने वाली LGM-30G को हासिल कर चुकी हैं तब डीआरडीओ 700-1200 K.M. तक मार करने वाली शौर्य, अग्नि और ब्रह्मोस के प्रक्षेपण पर वाहवाही लूटती है।
डीआरडीओ को दिए जाने वाले 1528 करोड़ रुपये के बजट में उस व्यक्ति का भी हिस्सा होता है जो रात में बस पांच रुपये का पारले-जी खाकर फुटपाथ पर सो जाता है, उस मां का भी हिस्सा होता है जो अपने बेटे के लिए दूध खरीदने के कारण खुद भूखे सो जाती है, उस किसान का भी हिस्सा होता है जो मजह सौ रुपये के लिए मौत को चुन लेता है, उस बहन-बेटी का भी हिस्सा है जो अपने बीमार पति, बच्चे या अन्य के इलाज के लिए अपने शरीर को जिस्म के भूखे भेड़िये के आगे परोसने को मजबूर हो जाती है।
हम सबसे अधिक युवाओं वाले देश के नागरिक है, सबसे अधिक इंटरनेट यूज करने वाले उपभोक्ता हमारे देश में हैं, आइटी में नंबर वन है, गौरवशाली इतिहास और धरोहरों में हमारा कोई जवाब नहीं है, लेकिन 2013 की रक्षा खरीद की रिपोर्ट देखकर क्या खुद पर इतराने का मन करेगा। 2013 में रक्षा उपकरण खरीद पर आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि हमारे देश ने सवसे अधिक 8283 करोड़ डॉलर खर्च किए, जबकि चीन ने 1534 और पाकिस्तान ने महज 1002 करोड़ डॉलर के रक्षा उपकरणों की खरीददारी की। रक्षा उपकरण खरीदना मेरी नजर में गलत नहीं है, लेकिन क्या इंसास और एसएलआर जैसी राइफल की भी खरीद की जानी चाहिए। अगर डीआरडीओ इनकी खरीद रोकने में भी सक्षम नहीं है तो एक बार नए सिरे से पूरे संगठन की रूपरेखा तय की जानी चाहिए… मेरा तो बस यही मत है। रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने तो डीआरडीओ प्रमुख अविनाश चंदर को हटाकर तारीफ वाला काम किया है। 31 जुलाई 2013 से अब तक मेरी नजर में अविनाश चंदर ने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिसकी तारीफ की जाए…

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