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पूरा हुआ ख्वाब, लेकिन थी बेचैनी
पत्रकारिका करने का जो ख्वाब देखा था वो हकीकत में बदलने वाला था। जुलाई 2012 में एमजेएमसी की अंतिम परीक्षा देने के बाद हमारे बैच के सभी students घर जाने की तैयारियों की चर्चा में व्यस्त थे… सबके चेहरे पर ठीक वैसी ही खुशी थी जैसी आजीवन कारावास की सजा काटकर जेल से बाहर आने वाले कैदी के चेहरे पर होती है। मुझे अच्छी तरह याद है हमारे बैच के बस तीन ही दुखी थे, मैं, श्वेता और सोमदत… उस उधेड़बुन में लगे थे कि अब क्या करेंगे?
जॉब की टेंशन क्या होती है, जीवन में शायद पहली बार उस रात महसूस किया था। Room के पास ही पार्क में चला गया, कभी टहलता तो कभी बैठ जाता… ऐसा करते-करते सुबह हो गई। लोग जग गए तो आकर कमरे में लेट गया, लेकिन नींद नहीं आ रही थी। मैंने उसी दिन इलाहाबाद जाने का निश्चय किया। सुबह दस बजे के लगभग श्वेता ने कॉल किया तो बताया इलाहाबाद जा रहा हूं, सोमदत से भी यही बोला…
आश्वासन ने कर दिया था बेफिक्र…
इलाहाबाद दैनिक जागरण से ही मैंने अपनी Internship की थी, मई 2012 में दूसरी बार जब Internship पूरी करके दिल्ली अाने लगा तो देर रात तक न्यूज रूम में रुका रहा। वहां के तत्कालीन संपादकीय प्रभारी सदगुरु शरण अवस्थी जी ने आशीर्वाद दिया और बोले- टेंशन न लेना कोर्स पूरा करके बताना। अपनी तरफ से मैंने बहुत मेहनत की थी Internship के दौरान, केवल इसलिए कि मेरे गुरुजनों ने कहा था कि जॉब का पहला दरवाजा वहां से ही खुलता है। मुझे विश्वास था कि सर मेरी जॉब जरूर लगवा देंगे… इसी कारण जब इलाहाबाद से दिल्ली के लिए चला तो इतनी खुशी थी की बयां नहीं कर सकते… फेसबुक पर स्टेटस डाल दिया, Teachers को मेल कर दिया… दोस्तों को मैसेज कर दिया… सोमदत और श्वेता भी मेरी उपलब्धि पर बहुत खुश थे। पार्टी के लिए मेरा इंतजार कर रहे थे… मुझे भी उनसे मिलने की बहुत बेकरारी थी, लेकिन कोर्स खत्म करने के बाद दिल्ली से जब इलाहाबाद आ रहा था तो उतनी ही बेचैनी थी। कई सवाल मन में उठ रहे थे… जिनमें सबसे भयानक था कि अगर सदगुरु सर ने हाथ खड़े कर दिए तो क्या करूंगा…
समय शायद थम सा गया था…
रात करीब 11 बजे मेरी ट्रेन इलाहाबाद पहुंच गई… घर में भी रातभर नींद नहीं आई। सुबह सात बजे ही नहाकर तैयार होकर न्यूज पेपर पढ़ रहा था तभी पापा आए और मुझे तैयार हालत में देखकर चौक गए… तंज कसा आज ये कमाल कैसे हो गया। पेपर पढ़ा, नास्ता किया, न्यूज सुना, लेकिन समय मानो रुक सा गया था। सदगुरु सर 11 बजे तक अॉफिस आते थे, इसलिए मैं दस बजे ही घर से निकल गया। सवा दस तक सिविल लाइंस में चाय की दुकान पर बैठकर टाइम पास करने लगा… 11 बजा तो सोचा कि सर तो अभी Morning Meeting में होंगे जाना ठीक नहीं होगा, फिर 12 बजे का वेट करने करने लगा। 12 बजा तो सोचा कि अभी सभी reporters निकल रहे होंगे, वे तरह-तरह के प्रश्न करेंगे इसलिए थोड़ी देर बाद चलते हैं। करीब 12.35 पर अॉफिस गया तो अॉपरेटर ने बताया सर जस्ट अभी कहीं के लिए निकले हैं। मैं दो बजे तक अॉफिस के सामने चाय की दुकान पर बैठा रहा, इसलिए कि सर दोपहर में दो बजे के करीब खाना खाते थे, सोचा उस समय तो जरूर आएंगे, लेकिन उस दिन सर शाम करीब पांच बजे के बाद अॉफिस में आए। मैं घर वापस चला गया, क्योंकि न्यूज रूम में उस वक्त काफी भीड़ होती। दूसरे दिन भी मैं 11 बजे ही अॉफिस पहुंच गया। गेट पर ही वेट करने लगा… जैसे ही morning meeting खत्म हुई, बगैर किसी से बात किए सीधे सर के पास चला गया। स्वभाव के अनुसार सर ने चाय और पानी पिलाया… हालचाल पूछा फिर मैंने उनको अपने आने का प्रयोजन बता दिया।
कुछ पल के लिए शून्य में चला गया….
मुझे वो पल अच्छी तरह से याद है जब मैंने सर से जॉब के लिए बोला तो उन्होंने कहा प्रदीप अभी यहां तो जगह नहीं है। इतना सुनते ही कुछ देर तक मैं बिल्कुल शून्य में चला गया था, महज 30 सेकेंड में ही एसी कमरे में भी मुझे पसीना आ गया। खुद को संभाला और सर से बात करता रहा। मुझे नहीं पता कि सर ने मेरे ऊपर उस वक्त दया किया या उनकी तरह मजाक किया जिनके बारे में आगे जिक्र जरूर करूंगा। सर ने मुझे नोएडा में जागरण डॉट कॉम के संपादक शशांक शेखर त्रिपाठी और डॉ. उपेंद्र पांडेय की ई-मेल आइडी दी और #resume भेजने को कहा। जॉब की ललक ही थी कि मैं अॉफिस से निकलते ही मोबाइल से अपना #resume दोनों मेल आइडी पर सेंड कर दिया। जल्दी-जल्दी घर आया और बैग पैक कर दिल्ली रवानगी की तैयारी पूरी कर ली। जाते समय पापा, मम्मी, भाई-बहन सबकी आंखों में जॉब कब मिलेगी वाला प्रश्न देखा… हालांकि किसी ने ऐसा पूछा नहीं लेकिन हालात सब बयां कर रहे थे। मैंने उनको देख मन ही मन वादा किया कुछ भी हो जाए अब बगैर जॉब के वापस नहीं लौटूंगा।
सभी परेशान थे …
दोपहर में ही सोमदत आया और मिलकर चला गया फिर श्वेता से भी मिला। दोनों जॉब के लिए बहुत परेशान थे। श्वेता के घरवाले उसे वापस घर भेज देना चाहते थे, क्योकि बगैर जॉब के उसके नोएडा में रहने की कोई वजह नहीं थी, जबकि सोमदत के घर से भी जॉब को लेकर काफी दबाव था। मैं सोच रहा था कि एक बार बस मेरा हो जाए फिर दोनों को दैनिक जागरण में किसी न किसी तरह से तो बुला ही लूंगा, लेकिन दोनों को उस समय समझाना काफी कठिन था। दोनों को रोज #boost-up वाला डोज देता, इस तरह करीब दस दिन बीत गए, लेकिन कॉल नहीं आई। डरते-डरते मैंने सदगुरु सर को फोन किया तो उन्होंने कहा दस मिनट बाद बताता हूं। मैं लगातार घड़ी देखता रहा… दस मिनट हो गए थे, लेकिन खुद को तसल्ली देने लगा कि टाइम गलत काउंट किया है। करीब 18 मिनट बाद मैंने फिर हिम्मत करके सर को कॉल किया तो उन्होंने अगले दिन सुबह 11 बजे के बाद जागरण के नोएडा अॉफिस में जाने को कहा। बहुत खुशी मिल रही थी… मैंने श्वेता और सोमदत दोनों को ये बात तुरंत बता दी… श्वेता तो बहुत खुश थी, लेकिन सोमदत शायद दिल से खुश नहीं था केवल दिखावा किया। मेरी बाइक उसके पास ही थी, उसे बुलाया तो मेरे रूम पर आ गया और मुझे सुबह जागरण के अॉफिस छोड़कर चला गया।
अगले हिस्से में पढ़ें… मैराथन जॉब सर्च और डरावने इंटरव्यू का दौर
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